“कौन सगा?”

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कविता — 

कौन सगा…
हर मोड़ पे मिलेगा दगा,
इस दुनिया में आखिर कौन है तेरा सगा?

जहाँ
नेता जनता को दे रहा,
बेटा बाप को दे रहा,
भाई—भाई को दे रहा,
पत्नी—पति को दे रही,
पति—पत्नी को दे रहा…

किस पर करे भरोसा यहाँ इंसान,
सबके चेहरे पर हज़ार नक़ाब,
हँसते हैं संग–संग चलते हैं,
पर दिल में रखते अलग हिसाब।

लाभ-नुकसान की इस दुनिया में
रिश्तों का अब मोल लगा,
खून भी यहाँ पानी जैसा—
ना कोई अपना, ना कोई परा।

फिर भी
एक सच सीधा-सपाटा,
जितना भरोसा ईश्वर पर,
उतना नहीं है किसी नाते पर भाता।

चल अकेला…
पर दिल में रोशनी जगा,
क्योंकि दोस्त वही है
जो बिना स्वार्थ
तेरे साथ खड़ा नज़र आ जाए—
बाकी तो बस…
हर मोड़ पर दगा ही दगा।

कवि गोपाल Gawande

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