क्यों जरुरी है स्वयं को जानना - जानें सहज योग से

  • Share on :

जब तक हम स्वयं को नहीं जानेंगे हम ईश्वर को नहीं जान सकेंगे इसीलिए स्वयं को जानना होगा।  हमारे अंदर स्थित आत्म तत्व से साक्षात्कार पाना ही आत्म साक्षात्कार है।  
नचिकेता की कथा से बात थोड़ी और स्पष्ट होती है।   नचिकेता ने अपने पिता का विरोध किया था जब वे बीमार गायों को ब्राम्हणों को दान में रहे थे। नचिकेता चाहते थे पिता स्वस्थ गायों को दान में दें।  नचिकेता की दखलअंदाजी से क्रोधित पिता वाजश्रवा ने क्रोध में आकर नचिकेता को ही यमराज को दान में दे दिया।  नचिकेता के अच्छे गुणों से यमराज इतने खुश हुये कि उन्होंने  नचिकेता  से तीन वर मांगने को कहा।  दो‌ वर  नचिकेता ने अपने पिता के लिए मांगा पहला यह कि उनका क्रोध समाप्त हो और दूसरा कि उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो और तीसरे वर में नचिकेता ने आत्मा के रहस्य का ज्ञान जानने की इच्छा रखी।   यमराज इस रहस्य को उजागर नहीं करना चाहते थे।  पर नचिकेता रहस्य जानने  के लिए अड़‌ गये।   यमराज ने नचिकेता को जो आत्मा का रहस्य बताया वह कठोपनिषद में निम्न प्रकार से वर्णित है -
 "यमराज ने कहा नचिकेता आत्मतत्व‌ कोई साधारण बात नहीं है। संसार में अधिकांश मनुष्य ऐसे हैं जिनको आत्म कल्याण के बारे में कुछ भी सुनने को नहीं मिलता।  वे ऐसे वातावरण में रहते हैं जहाँ प्रात: काल‌ जगने से लेकर रात्रि को सोने तक केवल विषय पर ही चर्चा ही हुआ करती है। उनके मन में आत्म तत्व‌ को सुनने समझने की कल्पना ही नहीं आती या मंदबुद्धि के कारण वो उसे समझ ही नहीं पाते हैं।  परंतु तीक्ष्ण बुद्धि पुरुष उस आत्म तत्व को समझ लेते हैं वे आत्म तत्व को आत्मदर्शी  आचार्य के द्वारा उपदेश प्राप्त करके अपने जीवन को सफल बनाते हैं।" 
आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिंब है।  आत्मा के रुप में ईश्वर हमारे अंदर स्थित है। हमें उनका आभास नहीं होता क्योंकि हमारा चित्त उनमें नहीं होता हैं।  चित्त के लिए हम सभी को स्वतंत्रता है कि जैसा चाहे अपने चित्त का इस्तेमाल करे।   लेकिन यदि हम सचमुच ईश्वर को पाना चाहते हैं तो हमें अपने  आत्मा का दर्शन के लिए  शुद्ध इच्छा करनी होगी।  हम चाहे किसी भी धर्म से जुड़े हों हमारे लिए ईश्वर एक शक्ति है, विश्वास है।  यदि हम धार्मिक हैं तो हम ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं।  पर, उन्हें पा लेना हमारी कल्पना से परे है, हम इसे पूर्णतया असंभव समझते हैं।  
इसी कल्पना को वास्तविकता बनाता है सहज योग।  सहज योग माध्यम से आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना सरल है।  आत्मसाक्षात्कार के बाद हम सबमें एक ही चीज प्रतिबिंबित होती है, वह है आत्मा का प्रकाश।  फलस्वरूप हम अपनी हथेलियों व सिर के तालु भाग पर ठंडी लहरियों को महसूस करने लगते हैं, यह चैतन्य लहरी है।  हर आत्मसाक्षात्कारी को अनुभव एक सा ही आता है।   ये चैतन्य लहरियां ही ईश्वर की अनुभूति है।  इन चैतन्य लहरियों को पाने के बाद हम निर्विचार समाधि में चले जाते हैं।   यह वो अवस्था होती जिसके लिए  संत हिमालय पर जाकर तप किया करते थे।  अब इस घोर कलियुग में परमपूज्य श्री माताजी निर्मला देवी प्रणित सहज योग के माध्यम से यह ज्ञान सहजता से मिल रहा है। यह जड़ का ज्ञान है और इसके लिए हमें भी सुक्ष्म होना पड़ेगा ताकि हम अपने चित्त को अपने अंदर ले जा सके,  कुंडलिनी  जागृति की गूढ़ता को समझें और सहस्त्रार में परमात्मा के दिव्य शक्ति से संपर्क स्थापित कर सकें।  ऐसा होते ही हम अपने सारे अवगुणों से मुक्त हो जाते हैं और अपने आत्मा रुपी दर्पण में अपनी दिव्यता को देखने में समर्थ हो जाते हैं। 
सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी हेतु टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 के माध्यम से हमसे संपर्क करें। सहज योग पूर्णतया निशुल्क है

Latest News

Everyday news at your fingertips Try Ranjeet Times E-Paper