जेएन.1 वैरिएंट पर बढ़ती चिंताओं के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों से सतर्क रहने की अपील की
नई दिल्ली। कोरोना वायरस के जेएन.1 वैरिएंट पर बढ़ती चिंताओं के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों से सतर्क रहने की अपील की है। इस बीच डब्ल्यूएचओ की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन कहा है कि तत्काल घबराने की कोई जरूरत नहीं है। एजेंसी ने इसे अभी वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट के रूप में दर्ज किया है। वैरिएंट ऑफ कंसर्न करार दिए जाने तक इससे घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि, हम लापरवाही नहीं कर सकते हैं।
वहीं, भारत में बीते पांच सप्ताह से कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में नया उप स्वरूप जेएन.1 पाया जा रहा है, लेकिन अब इसके प्रसार में वृद्धि होती दिखाई दे रही है। बीते एक सप्ताह में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए आए मरीजों के सभी सैंपल में यह नया उप स्वरूप मिला है, जो वर्तमान में दुनिया के 40 से अधिक देशों में संक्रमण को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही देश के 11 राज्यों में कोरोना बढ़ रहा है।
भारत में अब तक JN.1 सब-वैरिंएट के 26 मामले सामने आए हैं। 25 मामलों में से 19 गोवा में, चार राजस्थान में और एक-एक केरल, दिल्ली, महाराष्ट्र में पाए गए। एक मामला कहां का है? इसका विवरण अब तक सामने नहीं आया है।
गोवा में पाए गए JN.1 वैरिएंट के सभी 19 मामले अब ठीक हो चुके हैं। मरीजों से एकत्र किए गए नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग के दौरान इस वैरिएंट का पता चला था।
गोवा के महामारी विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत सूर्यवंशी ने बताया कि जेएन.1 वैरिएंट वाले मरीजों में हल्के लक्षण थे और वे अब ठीक हो गए हैं।
इससे पहले बुधवार को जेएन.1 सब-वैरिएंट के दो मामले जैसलमेर में सामने आए। दो अन्य मामले गुरुवार को जयपुर में सामने आए।
भारत में 594 ताजा कोविड-19 मामले दर्ज किए गए। देश में अब सक्रिय मामलों की संख्या बढ़कर 2,669 हो गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने JN.1 को वर्तमान सबूतों के आधार पर कम जोखिम वाला बताया है। इसके मूल वैरिएंट BA.2.86 से अलग और वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।
इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में हर 24 में से एक व्यक्ति कोरोना से संक्रमित है। लंदन इससे सबसे अधिक प्रभावित है। इसकी वजह अत्यधिक संक्रामक जेएन.1 वैरिएंट को बताया जा रहा है।
पूरे इंग्लैंड और स्कॉटलैंड में कोरोना की प्रसार दर 4.2% है। लंदन में यह दर 6.1% रिकॉर्ड की गई है।
यूके स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की एक संयुक्त रिपोर्ट की मानें तो यह वैरिएंट 18 से 44 साल की उम्र के लोगों में ज्यादा तेजी से फैसला है।
रिपोर्ट में बढ़ते मामलों का कारण ठंड का मौसम, छोटे दिनों और सर्दी के मौसम में बढ़ते सामाजिक मेलजोल को बताया गया है। सांस लेने के अनुकूल वातावरण की वजह से यह वैरिएंट ज्यादा तेजी से फैल रही है।
साभार अमर उजाला