मध्यप्रदेश में भाजपा का क्लीन स्वीप, हार से कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं के भविष्य पर छाए संकट के बादल
भोपाल। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की जीत हुई है। इस बार कांग्रेस छिंदवाड़ा सीट भी नहीं बचा पाई है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने ही घर में बड़ी मार्जिन से चुनाव हार गए। कांग्रेस की इस तरह की हार से बुजुर्ग नेताओं के भविष्य क्या होगा, इस सवाल खड़े हो रहे हैं। वहीं कांग्रेस का युवाओं को प्रदेश की जिम्मेदारी देने का प्रयोग भी इस चुनाव में काम नहीं आया।
दरअसल कांग्रेस ने हाल ही में पीसीसी चीफ की कमान जीतू पटवारी को दी थी। वहीं विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद आदिवासी युवा नेता उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। इसके बाद से यह माना जा रहा था कि कांग्रेस के इस परिवर्तन से नई पीढ़ी उनके साथ जुड़ेगी और उन्हें लोकसभा चुनाव में 10 से 15 सीटें मिल सकती हैं। लेकिन इसके उलट कांग्रेस मध्य प्रदेश में खाता भी नहीं खोल पाई। अब जीतू पटवारी और उमंग सिंघार के भविष्य पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। देखना होगा कि क्या कांग्रेस आलाकमान इन नेताओं को आगे भी काम करने का मौका देगी या एक बार फिर से बदलाव किया जाएगा। हालांकि जीतू पटवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मध्य प्रदेश में मिली हार की जिम्मेदारी ले ली है। और किसी भी परिवर्तन के लिए तैयार रहने की बात कही है।
दरअसल कमलनाथ लगातार 45 सालों से छिंदवाड़ा में जीतते आए हैं। 2019 में उनके पुत्र नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा से विजय हासिल की थी। लेकिन इस बार वे बंटी साहू से बड़े अंतर से चुनाव हार गए। इसका सीधा असर कमलनाथ की राजनीतिक करियर पर पड़ेगा। खास बात यह है कि कमलनाथ के साथ-साथ उनके पुत्र नकुलनाथ के भविष्य पर भी संकट के बदल छाने लगे हैं। क्योंकि कमलनाथ ने अपने पुत्र को छिंदवाड़ा से जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। कांग्रेस के बड़े नेता होने के बावजूद वे एक सीट पर सिमटकर रह गए थे। अब ऐसे में नकुलनाथ को दोबारा छिंदवाड़ा से टिकट दिलवा पाना उनके लिए टेढ़ी खीर होगी।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सिंह को राजगढ़ से चुनावी रण में उतारा गया था। ऐसा माना जा रहा था कि दिग्विजय सिंह राजगढ़ से कांग्रेस को विजय दिलाएंगे। लेकिन दिग्विजय सिंह को अपने घर में ही बड़ी हार मिली है। अब इसके बाद से दिग्विजय सिंह के करियर पर भी सवालिया निशान खड़ा हो रहा है। जानकारी के लिए बता दें भले ही दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ते थे, लेकिन हर चुनाव में उनकी अहम भूमिका रहती थी। चाहे वह टिकट वितरण में हो या प्रत्याशियों का प्रचार प्रचार करना हो। कार्यकर्ताओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। लेकिन अब वह इस चुनाव को आखिरी बता रहे थे उनका साफ कहना था कि इसके बाद में वे चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन उनको जाते-जाते भी हर का सामना करना पड़ा है।
कांग्रेस के सभी बड़े नेता लगातार दावा कर रहे थे कि मध्य प्रदेश में उन्हें 10 से 15 सीटों पर विजय मिलेगी। लेकिन वह इस बार मध्य प्रदेश में खाता तक नहीं खोल पाए। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 28 सीट पर जीत दर्ज की थी। छिंदवाड़ा सीट जीतकर कांग्रेस ने भाजपा को क्लीन स्वीप से रोका था। इस बार ऐसा नहीं हो पाया। एग्जिट पोल में भी भाजपा के इस बार क्लीन स्वीप का अनुमान लगाया गया था।
लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ अपने पुत्र नकुलनाथ के साथ बीजेपी में शामिल होने की पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन अचानक उनके मन में परिवर्तन आया और वे अपने निर्णय को बदल दिया और कांग्रेस में ही रहकर छिंदवाड़ा से एक बार फिर चुनाव लड़ा। अब अगर कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ का भविष्य संवारने के लिए बीजेपी में जाने का रुख करते हैं, तो ऐसे में भाजपा उन्हें स्वीकार नहीं करेगी। क्योंकि भाजपा उन्हें छिंदवाड़ा से ही चुनाव लड़ने के लिए अपने पार्टी में शामिल कर रही थी। अब बीजेपी को छिंदवाड़ा में विजय हासिल हो गई है, इसलिए अब उन्हें कमलनाथ की जरूरत नहीं पड़ेगी।
साभार अमर उजाला