स्व. मामाजी को नमन कर नई फसल के अंश भेंट करने आ रहे है श्रद्धावान भक्त मामाजी के जिले के बामनिया स्थित भील आश्रम में लग रहा है भक्तों का मेला

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 झाबुआ : राजेश सोनी

स्व. मामा बालेश्वर दयाल की कुटिया और  समाधिस्थल , जिसके समीप श्रद्धावत राजस्थान के सुदूर इलाको से आए मामाजी के भक्त भाई , बहिने एवं बच्चे बैठे है , और अपने इस भगवान को श्रद्धाभाव से नमन कर अपनी नई फसल के अंश भेंट कर रहे है। साथ ही स्व. मामाजी की बताई नेक राह पर चलकर आदर्श जीवन व्यतीत करने का संकल्प दोहरा रहे है।

सच्ची आस्था और अटूट स्नेह से सराबोर इस प्रकार के सुखद दृश्य प्रसिद्व समाजवादी चिंतक, पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,पूर्व राज्यसभा सांसद , स्व. मामा बालेश्वर दयाल के झाबुआ जिले के बामनिया ग्राम स्थित भील आश्रम पर देखने को मिल रहे है। आश्रम में भक्त भाई ,बहिन म.प्र. ,  गुजरात और खासकर राजस्थान के विभिन्न ग्रामो से आ रहे है। जिनमें मामाजी के प्रति श्रद्धा कूट-कूटकर भरी हुई है। ये भक्तगण वर्षभर में प्रमुखतः तीन मर्तबा मामाजी के आश्रम पर आते है जिनमें दीपावली , होली पर्व और प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला 26 दिसम्बर का पुण्यतिथि आयोजन है। इसके अलावा अपने खेतों की नई फसल के अंश ककडी भुट्टे मामाजी के चरणों में समर्पित कर खुशहाल एवं प्रगतिशील जीवन हेतु आशीर्वाद प्राप्त करते है।

नहीं टिगी आस्था-

मामाजी के अवसान के वर्षो बाद भी मामाजी के इन अटूट भक्तों की आस्था का सिलसिला अनवरत जारी है। प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी यहां पर प्रतिदिन बडी संख्या में मामाजी के भगत पैदल एवं अपने निजी वाहनों से आवाजाही कर रहे है। भक्ति और अनुशासन के साथ जीवन यापन करने वाले मामाजी के भगतों द्वारा अपने इस देवता के धाम पर आकर अपनी नई फसल के अंश के रूप में ककडी भुट्टे चढाने का सिलसिला वर्षो से अनवरत जारी है।

आस्था के आगे बारिश का भी सामना

क्षेत्र भर मे वर्षा का अनवरत दौर जारी है, ऐसे मे भी बारिश मे होने वाली तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए भी मामाजी के भक्तगण राजस्थान के दूरस्थ इलाको से यहां आ रहे है, गत बुधवार 3 सितंबर को यहां पहुँचे भक्तो को तेज बारिश का सामना करना पड़ा, आश्रम मे मामाजी की कुटिया ओर समाधि स्थल के बीच उफान पर आ रही नदी के बावजूद भक्तो की आस्था नहीं डिगी, भक्तो ने लम्बे समय तक नदी के प्रवाह कम होने का इंतजार कर रपट से पानी उतरने के बाद मामाजी के समाधि स्थल पहुंच कर शीश नवाया।

 
बडी दूर से आते है श्रद्वालु

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी राजस्थान के डूंगरपुर, कुशलगढ, प्रतापगढ, बांसवाडा, दानपुर और राजस्थान के सुदूर ग्रामों के अलावा गुजरात दाहोद के लिमडी, और म.प्र. के बाजना , सैलाना आदि विभिन्न ग्रामीण अंचलों से नई फसल लेकर मामाजी के आश्रम में आने वाले भक्तों का सिलसिला जारी है। विगत कई वर्षो से परम्परागत रूप से आने वाले भक्तों के अलावा इस बार कई नवीन क्षेत्रों के भगत भी मामजी के प्रति श्रद्वा प्रकट करने के लिए यहां आ रहे है।


भील आश्रम करता है सेवा-

  
मामाजी के बामनिया स्थित भील आश्रम में सुशीला मूर्ति भाई एवम अनिल विजयभाई मछार, परिवार द्वारा यहां आने वाले मामाजी के भगत परिवारों की आवशयक सुविधाओं का अपने स्तर पर ध्यान रखा जाता है। भगतों का इन दोनों परिवारों से बन्धुत्व का रिश्ता बरसों से कायम है । 

 
आखिर क्यों बनी हुई है आस्था-


मामाजी आश्रम की पुत्री सुशीला मूर्ति बताती है कि मामाजी के अवसान के बावजूद भी वर्षो से पीढी दर पीढी मामाजी के भगतों की आस्था बनी हुई है। आधुनिक युग में इन भगतों की नई युवा पीढी भी इसका अनुसरण कर रही है। यह दर्शाता है कि मामाजी ने इन  भगतों के लिए क्या किया था। मामाजी ने अपने इन भक्तों को कोई रूपया पैसा नहीं दिया किन्तु जीने का जो तरीका बताया , जो संस्कार दिए। वो सब राजस्थान के सुदूर इलाकों के भक्तों की रग रग में समाए हुए है। 

 
मामाजी के परम सेवक विजयभाई मछार ने बताया कि मामाजी ने इन भक्तो का उद्धार किया। मामाजी के भक्तों की ऐसी आस्था है कि अपनी फसल की बोवनी में, खेती बाडी में कोई परेशानी आने में , सुख-दुःख में , जीवन के हर क्षण में , ये लोग मामाजी को याद करते है ।और यह भी सत्य है कि भगतों की विषम परिस्थतियों में मामाजी को याद करने से उनकी सारी परेशानियां भी दूर हो जाती है। अपनी खेती बाडी के मालिक भी भगत लोग मामाजी को मानते है इसलिए नई फसल भेंट करने के लिए यहां वर्षो से पीढी दर पीढी आ रहे है।

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