'देवी भागवत पुराण' व ‘ललिता सहस्त्रनाम’ में वर्णित कुण्डलिनी शक्ति की अनुभूति करें सहजयोग से

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प्रकृति व पुरुष की सृजनकर्ता आदिशक्ति त्रिगुणात्मिका हैं । वह चितरूपिणी महासरस्वती , सद्रूपिणी महालक्ष्मी और आनन्द रूपिणी महाकाली हैं परमपूज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी आदिशक्ति भगवती का अवतार है । आज सहजयोग को ‘महायोग’ और श्रीमाताजी को महाअवतरण कहा जाता है  , क्योंकि उन्होंने मानव के विकास को अगले चरण में पहुँचाकर साक्षात्कार की प्रक्रिया को सहज सुलभ बना दिया | क्रमिक उत्क्रांतिवाद की परम्परा में अमीबा से मानव का विकास होने के बाद भी मनुष्य के केवल तीन आयाम सार्वजनिक रूप से होते थे, जिसे दैहिक, दैविक और भौतिक या स्वप्न जागृती और सुषुप्ति कहा गया । वैदिक काल में ऋषि मुनियों ने अध्यात्म की खोज कर आत्मा को खोज निकाला, जिसका वर्णन सारे वेद पुराण और  उपनिषद् कर रहे हैं । आज सहजयोग में जब हम विनम्रतापूर्वक अपना आत्मसाक्षात्कार मांगते हैं, तो हमारे पिंड में स्थित कुंडलिनी शक्ति उर्ध्वगामी होकर हमें तत्क्षण निर्विचार समाधी प्रदान करती है, और हमारे ब्रह्मरंध्र से और हाथों की उंगलियों के पोरों से शीतल चैतन्य लहरीयां निसृत होती हैं, इस प्रक्रिया के दौरान साधक की आत्मा प्रकाशित होती है, और वह साधक अपनी अध्यात्मिक यात्रा पर अग्रसर होता है । प्रकाशित आत्मा और चित्त के प्रकाश में वह साधक अंतर्वलोकन कर धीरे-धीरे अपने षड् रिपुओं को काबू में कर सहज समाधी में लीन होकर आत्मानंद प्राप्त करता है । 'देवी भागवत पुराण’ में श्री मार्कण्डेय ऋषि हमें बताते हैं कि आप शक्ति को इस बात से पहचान सकते हैं कि उस शक्ति की उपस्थिती में साधक की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है | ५ मई १९७० तक यह एक रहस्य था  सच तो यह है कि २१ वीं सदी के आधुनिक युग में जो आश्चर्यजनक अनुभव हमें हो रहे हैं, इनमें पुराने ग्रंथों का प्रासंगिक महत्व प्रकट हुआ है । उदाहरणार्थ ‘श्री ललिता सहस्त्रनाम’ मंत्रो का संदर्भ लिया जा सकता है , देवी के १००० नामों में से एक नाम ‘कुण्डलिनी’ है । इसका अर्थ यह हुआ कि वे हर व्यक्ति के अंदर सुप्तावस्था में, त्रिकोणाकार अस्थि में सर्प के समान कुंडल के रूप में विद्यमान रहती हैं। वे ‘सहस्त्रदल पदमस्थ’ भी कहलाती है , अर्थात मस्तिष्क के ऊपर एक हजार दल में विराजित, अलग-अलग स्थिति के अनुसार अलग - अलग नाम हैं , जिससे हमें स्मरण होता है कि वे अपने भक्तों पर कृपा करनेवाली, मुक्ति का आनंद देनेवाली, मोक्षदायिनी, मुक्तिदायिनी हैं। वह कुण्डलिनी के रूप में सहस्त्रार तक जागृत होकर अपने बच्चों को अध्यात्मिक जन्म प्रदान करती हैं ।
  इस पावन ग्रंथ में देवी हिमालय से कहती हैं ,मुझमें व कुण्डलिनी में कोई अंतर नहीं है । सहस्त्रार ही योग का पूर्ण व उत्तम लक्ष्य है । जब शिव व शक्ति का मिलन होता है ,तब अमृत बहता है तथा यह चक्रों के देवताओं को पोषित करता है |
परमपूज्य श्री माताजी कहते हैं कि हम शक्ति के पुजारी है , शाक्त धर्मी है । इस आदि शक्ति का अवतरण अनेक बार इस पृथ्वी पर हुआ। इस बार आदि शक्ति को ‘महामाया’ का रूप लेना पड़ा , जिसमें सारी शक्ति का समन्वय है। एक बड़ा गहरा और सूक्ष्म काम इस महामाया को करना था, वह था सामूहिक चेतना की जागृति। श्री माताजी जी ने पूरे विश्व में लाखों लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान कर इसे संभव किया। आप भी इस अमृतमयी आत्मसाक्षात्कार का पान कर सकते है । नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in से प्राप्त करें।

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