बारिश आई है... ज़रा रुक जाइए, भीग जाइए, मुस्कुरा जाइए!
— रणजीत टाइम्स विशेष स्तंभ
बारिश हो... और हम छत की खोज में भागते रहें?
नहीं! इस बार रुकिए, ज़रा भीगिए...
क्योंकि बारिश सिर्फ मौसम नहीं लाती, वो यादें, ख्वाब और जिंदगी के बंद पड़े दरवाज़े खोलती है।
बारिश में वो स्ट्रीट लाइट की रौशनी में थिरकती बूंदें disco नहीं, ज़िंदगी का नृत्य करती हैं।
थोड़ा धीमा चलिए...
मंज़िलें वहीं हैं, लेकिन ये रास्ता दोबारा नहीं मिलेगा।
भीगना गुनाह नहीं है...
ज़ुकाम आ गया तो दवा मिल जाएगी,
लेकिन इस मौसम में खुद से मुलाक़ात का जो मौका है, वो फिर शायद ना मिले।
याद कीजिए, वो कागज़ की नाव, कॉलेज से भीगकर लौटते दिन,
या बारिश में बेवजह हंसते वो दोस्त...
शायद सब लौट के ना आएं,
पर उनकी यादें इस बारिश में ज़रूर लौट सकती हैं।
तो बारिश हो रही है...
छाते बंद रखिए, दिल खोलिए...
थोड़ा चलिए, थोड़ा भीगिए...
क्योंकि ये सावन...
जैसे घर आई बिटिया...
जाएगा भी चुपचाप।
इसलिए मत कहिएगा – "काश थोड़ा और रुक जाती..."
अभी वक्त है...
जरा मुस्कुरा लीजिए! ????