सहजयोग के माध्यम से जानें भारतीय योग संस्कृति का शुद्ध स्वरूप
21 जून : अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
दुनिया भर में हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। इस साल विश्व अपना 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने जा रहा है। योगा डे के दिन जगह-जगह योग कैंप का आयोजन किया जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस दिन योग के महत्व को समझ उसे अपनी जीवन शैली का का हिस्सा बना सकें। सहज योग ध्यान केंद्र से जुड़े साधक भी विभिन्न स्कूलों, काॅलेजों, धार्मिक क्षेत्रों, पार्कों, और काॅलोनियों में तथा इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन सहज योग ध्यान की जानकारी देकर लोगों को उत्थान का मार्ग दिखायेंगे। योगासन दो शब्दों से मिलकर बना है योग व आसन । विभिन्न प्रकार के आसन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए की जाने वाली एक बाह्य क्रिया है जबकि योग का अर्थ है जुड़ना, प्रश्न आता है किससे जुड़ना ? योग को मानव के लिए प्रतिष्ठित करने वाले मनीषियों ने इसका उत्तर दिया है आत्मा का परमात्मा से योग । जिसकी शुद्ध इच्छा योगी के अंदर होनी चाहिए।
सहज योग से जुड़ने की भी यही पात्रता है साधक की शुद्ध इच्छा। हम सभी जानते हैं कि इच्छा क्या है क्योंकि इच्छा के बगैर कोई इंसान नहीं है। मनुष्य की इच्छायें असीम होती है। इच्छा एक मादक और मीठा जहर भी है जो मानव के संतुष्टि और आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग में बाधा बनकर खड़ी रहती है। मानव जितना है उससे ज्यादा पाने की आकांक्षा रखता है। इच्छा पूर्ण न होने पर मानव अशांत होने लगता है, विपरित प्रतिक्रियाएं करने लगता है, ऊंची आवाज में बोलने लगता है, चिड़चिड़ाहट से भर जाता है और दु:खी भी होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह एक शुद्ध इच्छा नहीं थी। शुद्ध इच्छा वो है जिसके बाद कोई और इच्छा शेष ही नहीं रहे।
श्री माताजी कहती हैं परमात्मा को हमारी छोटी मोटी इच्छाओं की पूर्ति से कोई मतलब नहीं होता। यदि हम किसी गलत चीज को सुख मान ले रहे हैं तो यह हमारी गलती है। परमात्मा इंसान को सिर्फ परम ही देना चाहते हैं क्योंकि वो परमात्मा हैं और उन्हें यह पता है कि परम से बढ़कर कोई सुख नहीं। इंसान संसार को यह दिखाना चाहता है कि वो बेहद सुखी है इस दिखावे के लिये ही वो गलत आकांक्षायें करता है।
यदि हम स्वयं को पहचानने का प्रयास करेंगे तो अपनी इच्छा को भी पहचान लेंगे। अपनी सौंदर्यपूर्ण आत्मा को अपनी दिव्यदृष्टि से देख पाना ही सबसे बड़ा सुख है, क्योंकि यही आत्मा हमें परमात्मा से मिलाती है।
राजकुमार ध्रुव की कहानी शुद्ध इच्छा को स्पष्ट करती है। जब राजकुमार ध्रुव अपनी सौतेली माँ के व्यवहार से आहत होकर अपनी मां की आज्ञा से अपने अधिकारों को पाने की इच्छा लेकर भगवान की तलाश में निकल पड़े तब ईश्वर की तलाश में भटकते ध्रुव को ईश्वर कृपा से नारद मुनि गुरु रुप में प्राप्त हुये। कठिन तप के उपरांत भगवान प्रकट हुये। ध्रुव को गोद में बिठाकर पूछे, 'तुम मुझे क्यों बुला रहे हो पुत्र?' बालक ध्रुव ने कहा, ' भगवन मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता था, लेकिन अब कुछ नहीं पूछना'। कोई इच्छा शेष नहीं रही। सच है जिसे ईश्वर की गोद मिल गई हो, उसे और क्या चाहिए।
हमारी इच्छाओं पर भी हमें विचार करना चाहिए। बदलने वाली इच्छायें शुद्ध नहीं होती। मकान के बाद कार, फिर सुख सुविधा की वस्तुयें, सोने जवाहरात चाहे ये सब कितना भी मिल जाये, आकांक्षा पूरी नहीं होगी। कितना भी पढ़ लें, कितनी भी अच्छी नौकरी मिल जाये, हम पूर्णतया संतुष्ट होते ही नहीं है, कारण है ये शुद्ध इच्छा नहीं है। शुद्ध इच्छा तो बस आत्मज्ञान यानि आत्मा की प्राप्ति, या परम से योग ही है। इसके बाद कोई आकांक्षा नहीं होगी। यह इच्छा ही सर्वोपरि है। 21 जून योग दिवस पर अपनी इच्छा को पहचानने का प्रयास करें। तुच्छ इच्छाओं के पीछे हम आत्मोत्थान के मार्ग को भूल रहे हैं। जीवन में स्थिरता और शांति प्राप्त करने का मार्ग तलाशें।
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 www.sahajayoga.org.in से प्राप्त कर सकते हैं। सहज योग सदैव पूर्णतया निशुल्क है।