ड्रेनेज में डूबी विकास की तस्वीर: टैक्स पूरा, सुविधा अधूरी!
वोटर 90%, सुविधा 0% – बीजेपी गढ़ में बह रहा गंदा पानी
इंदौर का अंधा सिस्टम: कॉलोनियों में गंदगी, ड्रेनेज लाइन ग़ायब
मुख्यमंत्री से मंत्री तक सब मौन – मानवता और सर्वसम्पन्न नगर की चीख़ें कौन सुनेगा?
राजेश धाकड़
इंदौर। एक तरफ़ इंदौर देश का ‘सबसे स्वच्छ शहर’ कहलाता है, दूसरी ओर उसी शहर की दो प्रमुख कॉलोनियाँ – मानवता नगर और सर्वसम्पन्न नगर – प्रशासनिक उपेक्षा और आधारभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। यहां विकास नहीं, बदबूदार पानी बह रहा है। सड़कों की जगह सीवर की गंध है, और सपनों की कॉलोनियां अब नारकीय हालात में तब्दील हो चुकी हैं।
यहां की सुबह न सूरज से शुरू होती है, न चाय से – बल्कि बहते गंदे पानी और उठती दुर्गंध से।
इन बस्तियों में न समुचित नालियां हैं, न ड्रेनेज की कोई योजना। गटर लाइन तो जैसे निगम की प्लानिंग से ही नदारद है। समस्या उठाने पर रहवासियों को अपनी जेब से खर्च करके टैंकर बुलवाना पड़ता है। और हैरानी की बात यह है कि ये टैंकर भी निगम-ठेकेदार गठजोड़ का हिस्सा हैं – जिससे निगम को पैसा तो मिलता है, पर सुविधा जनता को नहीं।
सवाल निगम से:
टैक्स समय पर क्यों वसूला जाता है, जब सुविधाएं नहीं दी जा रहीं?
क्या ‘स्वच्छता रैंकिंग’ ही साफ़ शहर की पहचान है या ज़मीन पर रह रहे लोग भी मायने रखते हैं?
क्या केवल विज्ञापनों में ही स्वच्छ भारत मिशन जीवित रहेगा?
जवाब कौन देगा?
डॉ. मोहन यादव, मुख्यमंत्री एवं इंदौर के प्रभारी मंत्री – क्या आपकी नज़र इन कॉलोनियों तक पहुँचेगी?
कैलाश विजयवर्गीय, वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री – क्या आप इन कॉलोनियों में स्थायी समाधान का वादा करेंगे?
निगम कमिश्नर एवं कलेक्टर, जिनके नेतृत्व में इंदौर ने स्वच्छता में कई पुरस्कार जीते – क्या यह बदहाल इलाका आपकी सूची में शामिल भी है?
कॉलोनाइज़र पर क्यों नहीं जिम्मेदारी तय?
इन कॉलोनियों को विकसित करने वाले कॉलोनाइज़रों ने प्लॉट बेच दिए, लेकिन बुनियादी सुविधाएं देना भूल गए। क्या सिर्फ मुनाफा लेकर कॉलोनाइज़र मुक्त हो जाते हैं? या फिर इसमें कोई राजनीतिक संरक्षण की परतें भी छुपी हैं?
क्या अब जनता ही उठाएगी सरकार का बोझ?
यह सवाल हर रहवासी के दिल में है – क्या अब भी हमें ही पैसा जोड़कर पाइपलाइन बिछानी होगी? अगर हां, तो फिर सरकार, निगम और नेताओं की क्या भूमिका बचती है?
और सबसे बड़ा सवाल:
क्या यह मुद्दा फिर सिर्फ चुनावी भाषणों तक सीमित रहेगा, या अब कोई ठोस कार्रवाई भी होगी?