सहजयोग, श्री कृष्ण द्वारा भगवद्गीता में वर्णित योग की साक्षात् अनुभूति है

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भगवद्गीता एक पवित्र ग्रंथ है, ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को बताया था। गीता की मुख्य विशेषता यह है कि यह किसी एक विचारधारा या वाद जैसे कि द्वैत - अद्वैत, दर्शन अथवा संप्रदाय विशेष के लिए न होकर मनुष्य मात्र के कल्याण हेतु साक्षात् परमात्मा द्वारा संप्रेषित की गई है। गीता का उद्देश्य अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करना नहीं था वरन् मानव जाति को यह बताना था कि संसार में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं जिसमें मानव का कल्याण नहीं हो सकता। गीता में श्री कृष्ण ज्ञानयोग, भक्तियोग व कर्मयोग के द्वारा परमशक्ति से एकाकारिता की बात करते हैं। परंतु इन तीनों ही योग का अर्थ अत्यंत व्यापक है। चाहे फल रहित कर्म हो, निर्विकल्प बोध का ज्ञानयोग हो अथवा अनन्य भक्ति की स्थिति हो मायापति ने माया का चक्रव्यूह रचा है। इससे बाहर आने का एक ही मार्ग है आत्मबोध। पर विभिन्न मतानुसार आत्मबोध की प्राप्ति तो कठिन साधना के फलस्वरूप ही हो सकती है। अतः अधिकांश व्यक्ति  स्वयं को  इस पथ पर चलने योग्य नहीं मानते।
      परंतु वर्तमान में श्री माताजी निर्मला देवी जी द्वारा प्रतिस्थापित सहजयोग ध्यान आत्मबोध की प्राप्ति का एक सहज मार्ग है। आदिशक्ति स्वरूपा श्री माताजी द्वारा सहजयोग कुंडलिनी जागरण के शाश्वत ज्ञान पर आधारित है। जो भी जिज्ञासु साधक श्री माताजी के समक्ष स्वयं को समर्पित कर आत्मज्ञान को प्राप्त करने की इच्छा प्रकट करता है तत्क्षण वह इसे प्राप्त कर इसकी अनुभूति अपने तालु व हथेलियों पर कर सकता है। आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति व नियमित ध्यान द्वारा शनै: - शनै: हम वर्तमान में चित्त को स्थिर कर  गीता में वर्णित कालातीत, गुणातीत व धर्मातीत हो जाते हैं।इस संसार के सभी भौतिक संतापों से स्वयं ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है और हम नित्य प्रति साक्षी स्वरूप हो परमात्मा से एकाकारिता स्थापित करने में सक्षम हो जाते हैं। अतः सहजयोग श्री कृष्ण द्वारा गीता में वर्णित तमाम योगों की साक्षात् अनुभूति है। सहजयोग पूर्णतः निःशुल्क है।
अपने नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 अथवा यूट्यूब चैनल लर्निंग सहजयोगा से प्राप्त कर सकते हैं।

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