शाश्वत सत्य की खोज का मार्ग है सहजयोग
सहजयोग संस्थापिका परम पूज्य श्री माताजी ने सहजयोग के संबंध में अपनी पुस्तक 'सहजयोग' में वर्णित किया है कि,
"सर्वप्रथम जिज्ञासु होकर, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यक्ति को इस विषय तक पहुंचना चाहिए। परिकल्पना के समान, सम्मान पूर्वक इस विषय का विवेचन होना चाहिए और परीक्षण करने पर यदि सत्य पाया जाये तो निष्कपटता पूर्वक सचरित्र लोगों द्वारा यह स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह विषय व्यक्ति के पूर्ण हित के लिए तथा पूरे विश्व के हित लिए है।"
सहजयोग ध्यान धारणा द्वारा जब हम आत्मा 'से एकाकार हो जाते हैं तो हमारे क्रिया कलापों को, विचारों को बुद्धि का नहीं वरन् आत्मा का मार्ग दर्शन प्राप्त होता है। हमारी आदतें विचार, उद्देश्य, आवश्यकताएँ परिवर्तित होने लगती है और हम प्रत्येक कार्य में आनन्द का अनुभव करने लगते हैं। सहजयोगी आनंद, प्रेम, करुणा, संगीत, नृत्य व हास्य से भरा हुआ होता है। अत: सहजयोग सामूहिकता द्वारा विकीर्णित चैतन्य लहरियां अविश्वसनीय होती हैं जिन्हें अनेकों बार श्री माताजी के कार्यक्रम में कैमरे ने कैद किया है। जब हम आत्मा के सत्य को समझ लेते हैं तो अनेक प्रकार के डर व भय समाप्त हो जाते हैं।
भगवान श्री कृष्ण ने भी आत्मा के सत्य के विषय में कहा है - 'नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक: न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
( इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती | ( भगवद्गीता, अध्याय 2 श्लोक 231)
कुण्डलिनी शक्ति जब सहस्त्रार की ओर बढ़ती है तो हमारे भीतर अन्तर्शुद्धि की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है हमारे चक्रों नाड़ियों में जो भी दोष होते हैं उनका निवारण प्रारम्भ हो जाता है जिससे अनेक बीमारियाँ स्वतः ही ठीक होने लगती हैं। परंतु सहजयोग केवल समस्याओं के समाधान का विकल्प नहीं बल्कि सत्य की खोज का मार्ग है। सहजयोग आत्मज्ञान को प्राप्त कर आत्मनिरीक्षण द्वारा मनुष्यत्व से देवत्व की ओर उत्थान का योग है।
ये नज़दीकी सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 से प्राप्त कर सकते हैं या वेबसाइट sahajayoga.org.in पर देख सकते हैं।