ध्यान द्वारा योग की पूर्णता सिखाता सहज योग

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योग जो शरीर मन बुद्धि और आत्मा के एकाकार हो जाने की घटना है जिसमें जोड़ने से योग का तात्पर्य है। यह एक सामूहिक खोज है जिसका वर्तमान स्वरूप सहजयोग है। योग के जो प्रचलित स्वरूप हैं उनमें सूर्य नमस्कार यह ऐसी  पद्धति है जो बताती है कि सूर्य पृथ्वी का नियामक तत्व है जिसे नमस्कार करना अपने अहंकार को सूर्य के समक्ष समर्पित करना है क्योंकि वह ज्ञान का प्रतीक है ज्ञान से अहंकार ना हो इसलिए उस ज्ञान को नमन करना और विनम्र बने रहना शीतल बने रहना यही इस सूर्य नमस्कार का अर्थ है। इसी प्रकार विभिन्न आसन और योग की क्रियाएं आसन इसलिए कहीं कहीं गई क्योंकि सुखासन पर स्थिर होकर बैठना ध्यान के लिए सबसे आवश्यक शर्त है। परंतु सुखासन में बैठकर मन और बुद्धि को नियंत्रित करके चित्त को निवृत्तियों की ओर करके आखिर करना क्या है? इसी प्रश्न का उत्तर है आत्मा को पाना-याने आत्मसाक्षात्कार। योग का वास्तविक उद्देश्य है आत्मसाक्षात्कार। जब शरीर, मन और बुद्धि पर विजय प्राप्त करते हैं, उन्हें उपचारित कर लेते हैं, तो आपके लिए आत्मा को पाना सुलभ हो जाता है। इस दिशा में सहज योग एक सरल क्रांतिकारी पद्धति है जिसका प्रादुर्भाव आदिशक्ति श्री माताजी निर्मला देवी के सौजन्य से हुआ है सहज योग को अभिनव अविष्कार कहा जा सकता है क्योंकि यह सामूहिकता में मानवता के उत्थान को करता है इससे पूर्व व्यक्ति अपना व्यक्तिगत उत्थान ही कर पाता था एक समूह में एक साथ अनेक लोगों का उत्थान संभव हुआ जब सहज योग में सामूहिक आत्मसाक्षात्कार की घटना घटित हुई। इसके साथ ही ध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति स्वयं अपनी अनुभूति से अन्य व्यक्ति को आत्मसाक्षात्कार दे सके यह भी संभव  हुआ। इसका लाभ यह हुआ कि जिस तरह एक साथ बैठकर पूजा की जा सकती है उसी प्रकार एक साथ बैठकर ध्यान भी किया जा सकता है तो घर के सभी सदस्य एक साथ बैठकर अगर ध्यान करते हैं तो समस्त घर का मंगल होता है और नकारात्मकता हटकर पावन सकारात्मकता सभी परिवार के सदस्यों के भीतर एक साथ प्रवेश करती है। सहज योग की पद्धति भारतीय संस्कृति में परिवार और समाज के एक साथ उत्सव मनाने की परंपरा को और भी गहरा करती है। यहां ध्यान एक पारिवारिक उत्सव बन जाता है जिसमें बच्चे, बूढ़े, बड़े सब एक साथ मिलकर इस क्रिया को 10 या 15 मिनट कर ले तो सारी समस्याएं, उलझने, प्रश्न और चिंताएं नियंत्रित की जा सकती है, जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है। वास्तव में योग का उद्देश्य  भी यही है बाहर से भीतर की यात्रा ध्यान से ही आरंभ होती है। सहज योग इसमें सहायक है।
उल्लेखनीय है कि,सहजयोग एक ध्यान की क्रिया है जिसे प.पू माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा 5 मई 1970 से आरम्भ किया गया, जो की आज विश्व के 120 देशो में प्रचलित है, सहजयोग से कुंडलिनी जागरण एवं आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति की जा सकती है, व जैसे ही कुण्डलिनी का जागरण होता है वैसे ही मानव अपने अंदर परम शांति को अनुभव करता है, उसके विचार शून्य हो जाते है,एवं नियमित ध्यान करने से वह धीरे-धीरे अपने अंदर व्याप्त अनेक बीमारियों एवं विकारो से भी निजात पाता है। देश एवं विदेशो के अनेक वैज्ञानिको ने सहजयोग ध्यान पर शोध किया है, एवं इस ध्यान के माध्यम से परम शान्ति व अनेक बीमारियों एवं विकारो से मुक्ति की पुष्टि की है, इसे हर आयु, धर्म एवं वर्ग के लोग महसूस कर सकते है। आज के इस प्रतियोगी दौर में अत्यधिक तनाव में  रहने वाले युवा एवं विद्यार्थी सहजयोग के माध्यम से तनाव दूर कर सुख एवं आनंदमय जीवन व्यापन कर रहे है। सहजयोग का किसी भी विशेष जाति वर्ण एवं धर्म से मतलब नहीं है इसे सभी मानव अनुभव कर सकते है, एवं कर रहे है,यही कारण है कि सहजयोग ध्यान आज भारत के साथ विश्व भर में नियमित अभ्यास किया जा रहा है। इसके माध्यम से विश्व के लाखो लोग अनेक बीमारियों को दूर कर शांति अनुभव कर रहे है। अधिक जानकारी के लिए खोजें www.sahajayoga.org.in

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