श्री माताजी और सहजयोग: गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन हम अपने गुरुओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं, जिनसे हमें ज्ञान और मार्गदर्शन प्राप्त होता है। सहजयोग की संस्थापक श्री माताजी निर्मला देवी ने गुरु पूर्णिमा के महत्व को विशेष रूप से समझाया है।
श्री माताजी के अनुसार, "गुरु तत्व श्री महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की शक्तियों के समन्वय से बना है।" यह तीनों शक्तियाँ हमारे भीतर संतुलन और सामंजस्य स्थापित करती हैं। महालक्ष्मी हमारे जीवन में समृद्धि और संतुलन लाती हैं, महासरस्वती ज्ञान और कला की देवी हैं, और महाकाली नकारात्मकता और बुराई का नाश करती हैं। जब ये तीनों शक्तियाँ एक साथ कार्य करती हैं, तो हम अपने जीवन में संपूर्णता का अनुभव करते हैं।
सहजयोग में, श्री माताजी ने गुरु तत्व की महिमा को समझाया और इसे अपने भीतर स्थापित करने का महत्व बताया। उनका मानना था कि सच्चे गुरु का स्थान हमारे भीतर होता है। "आपको अपने भीतर गुरु तत्व को पहचानना और स्थापित करना होगा," उन्होंने कहा। यह आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया से ही संभव है।
श्री माताजी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विभिन्न प्रवचनों में आत्मज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के महत्व को बताया। उन्होंने कहा, "गुरु पूर्णिमा का अर्थ है अपने भीतर की गुरु शक्ति को पहचानना और उसे सम्मान देना। जब आप अपने भीतर के गुरु को पहचानते हैं, तो आप सच्चे मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।"
सहजयोग के माध्यम से, श्री माताजी ने लाखों लोगों को आत्मज्ञान का अनुभव कराया और उन्हें उनके जीवन में सच्चे मार्गदर्शन की दिशा दिखाई। गुरु पूर्णिमा के इस पवित्र पर्व पर, हम श्री माताजी के उपदेशों और शिक्षाओं को याद करते हैं और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
*संपादक: गोपाल गावंडे*
*रंजीत टाइम्स न्यूज*