"सामाजिक सौहार्द की मिसाल है छावनी का मसीही मंदिर चर्च "
इंदौर । नगर प्रतिनिधि। देश के सबसे स्वच्छ शहर के सबसे पुराने चर्च जो "चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया" की अगुवाई में संचालित होता है। यहां प्रेस्बिटेरियन चर्च , क्राइस्ट चर्च , न्यू क्राइस्ट चर्च , मसीही मंदिर CNI समुदाय के लोग यहां प्रार्थना करते हैं।
शैलेन्द्र साल्वे क्राइस्ट चर्च सोसाइटी के पूर्व सचिव ने हमें बताया कि इसमें चार अलग अलग सर्विस होती है,प्रार्थना करते हैं,
सभी के अपने-अपने पादरी अलग-अलग है , अपने निर्धारित समय पर आकर अपनी अपनी प्रार्थनाएं करते है।
यहां के पादरी है श्री जयवंत कटारा जो सुबह और शाम की आराधना का संचालन करते हैं।
चर्च में उपासना समय को लेकर यहां कोई भ्रांति नहीं है ।
चर्च को अपनी धार्मिक उपासना (worship) किसी एक निर्धारित समय तक सीमित करने की कोई बाध्यता नहीं है। चर्च एक स्वतंत्र धार्मिक संस्था है जिसे भारतीय संविधान के तहत धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
इसलिए चर्च को अधिकार है कि वे सुबह, दोपहर और शाम – किसी भी समय प्रभु की आराधना, प्रार्थना सभा या अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं और उनका ये मौलिक अधिकार है।उपासना के लिए किसी एक निश्चित समय का होना अनिवार्य नहीं है।
यह समस्त जानकारी चर्च की समिति एवं चर्च के फादर द्वारा दी गई है।
सभी विश्वासियों को स्वतंत्र रूप से, अपनी सुविधानुसार, चर्च आकर किसी भी समय प्रार्थना या उपासना करने का अधिकार प्राप्त है।
हम सभी से अपेक्षा करते हैं कि वे इस बात को समझें और चर्च की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करें। यहां के पादरी माइकल जी ने कहा कि
चर्च में प्रार्थना करना एक पवित्र और शांतिपूर्ण अनुभव है।
यहाँ कुछ बातें हैं जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए:
1. सम्मान और शांति बनाए रखें।
2. चर्च के नियमों और परंपराओं का पालन करें।
3. अपनी प्रार्थना में ईमानदारी और सच्चाई रखें।
4. चर्च के समुदाय के साथ जुड़ने का प्रयास करें।
5. अपनी प्रार्थना में आभार और धन्यवाद व्यक्त करें।
चर्च में प्रार्थना करने के कई कारण हो सकते हैं:
1. ईश्वर के साथ जुड़ना: चर्च में प्रार्थना करने से लोग ईश्वर के साथ अपने संबंध को मजबूत बना सकते हैं।
2. आध्यात्मिक शांति और सुकून: चर्च की शांत और पवित्र वातावरण में प्रार्थना करने से लोगों को आध्यात्मिक शांति और सुकून मिल सकता है।
3. समुदाय के साथ जुड़ना: चर्च में प्रार्थना करने से लोग एक समुदाय के रूप में एकत्र होकर प्रार्थना कर सकते हैं और एक दूसरे के साथ जुड़ सकते हैं।
4. धन्यवाद और आभार व्यक्त करना: चर्च में प्रार्थना करने से लोग अपने जीवन में आशीर्वाद और सुख के लिए धन्यवाद और आभार व्यक्त कर सकते हैं।
5. मार्गदर्शन और समर्थन मांगना: चर्च में प्रार्थना करने से लोग अपने जीवन के चुनौतीपूर्ण समय में मार्गदर्शन और समर्थन मांग सकते हैं।
चर्च में प्रार्थना करना एक व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभव हो सकता है जो लोगों को अपने विश्वास को मजबूत बनाने और ईश्वर के साथ जुड़ने में मदद करता है।
ईसाई धर्म में प्रार्थना के कई प्रकार हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रकार हैं:
1. धन्यवाद प्रार्थना: ईश्वर के प्रति आभार और धन्यवाद व्यक्त करने के लिए।
2. प्रशंसा प्रार्थना: ईश्वर की महानता और शक्ति की प्रशंसा करने के लिए।
3. क्षमा प्रार्थना: अपने पापों के लिए क्षमा मांगने के लिए।
4. मार्गदर्शन प्रार्थना: जीवन के निर्णयों और चुनौतियों के लिए मार्गदर्शन मांगने के लिए।
5. संरक्षण प्रार्थना: अपने और दूसरों के लिए सुरक्षा और संरक्षण मांगने के लिए।
6. आशीर्वाद प्रार्थना: दूसरों के लिए आशीर्वाद और सुख मांगने के लिए।
7. प्रार्थना सभा: समुदाय के साथ एकत्र होकर प्रार्थना करने के लिए।
इन प्रकार की प्रार्थनाएं ईसाई धर्म में प्रार्थना के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं और लोगों को अपने विश्वास को मजबूत बनान भारत में चर्च में प्रार्थना विभिन्न समुदायों और व्यक्तियों द्वारा की जाती है, जिनमें से कुछ प्रमुख समूह हैं:
1. ईसाई समुदाय: भारत में ईसाई समुदाय के लोग चर्च में प्रार्थना करते हैं और अपने विश्वास को मजबूत बनाने के लिए एकत्र होते हैं।
2. पादरी और पुजारी: चर्च के पादरी और पुजारी प्रार्थना का नेतृत्व करते हैं और समुदाय को आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
3. विश्वासियों के परिवार: ईसाई परिवार अपने बच्चों को चर्च में प्रार्थना में शामिल होने के लिए ले जाते हैं और अपने विश्वास को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।
4. नए विश्वासियों: जो लोग ईसाई धर्म में परिवर्तित होते हैं या अपने विश्वास को मजबूत बनाने के लिए चर्च में आते हैं।
5. समाज के विभिन्न वर्ग: चर्च में प्रार्थना में विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग शामिल होते हैं, जिनमें गरीब, अमीर, शिक्षित, अशिक्षित, और विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग शामिल हैं।
चर्च में प्रार्थना एक सामूहिक गतिविधि है जिसमें विभिन्न पृष्ठभूमि और अनुभव वाले लोग एकत्र होकर अपने विश्वास को व्यक्त करते हैं और ईश्वर के साथ जुड़ते हैं।
प्रभु यीशु की मुख्य शिक्षा है:
1. प्रेम और करुणा: यीशु ने प्रेम और करुणा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने दूसरों के प्रति प्रेम और सेवा करने की शिक्षा दी।
2. माफी और क्षमा: यीशु ने माफी और क्षमा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने दूसरों को माफ करने और अपने पापों के लिए क्षमा मांगने की शिक्षा दी।
3. विश्वास और आस्था: यीशु ने विश्वास और आस्था के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने लोगों को ईश्वर पर विश्वास करने और उनकी शिक्षाओं का पालन करने की शिक्षा दी।
4. नम्रता और सेवा: यीशु ने नम्रता और सेवा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने दूसरों की सेवा करने और नम्रता से जीने की शिक्षा दी।
यीशु की शिक्षाएं प्रेम, करुणा, माफी, और सेवा पर केंद्रित हैं, और ये शिक्षाएं ईसाई धर्म के मूल सिद्धांतों का हिस्सा हैं।