विद्वानों के अलग-अलग मत से दीपावली की तारीख को लेकर संशय बरकरार

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नई दिल्ली। दीपावली की तारीख को लेकर संशय की स्थिति बरकरार है। दरअसल काशी के विद्वानों का कहना है कि 31 अक्तूबर को पूरे देश में दीपोत्सव का त्योहार मनाया जाएगा। वहीं इंदौर के धार्मिक मामलों के विद्वानों ने 31 अक्तूबर के बजाय 1 नवंबर को दीपावली का उत्सव मनाने का फैसला किया है। विद्वानों के अलग-अलग मत से उत्सव की तारीख को लेकर चल रहा संशय और गहरा गया है। 
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद ने 31 अक्तूबर को दीपावली मनाने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी का कहना है कि 31 अक्तूबर को शाम 3.52 बजे अमावस्या की शुरुआत होगी, जो कि एक नवंबर की शाम को 5.13 बजे तक रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा लग जाएगी और प्रतिपदा में दीपावली पूजन का विधान नहीं है। 31 अक्तूबर को रात्रिव्यापिनी अमावस्या होने के कारण ही दीपोत्सव और कालीपूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है। 
काशी के विद्वानों के मुताबिक 29 अक्तूबर को धनतेरस का पूजन होगा। 30 अक्तूबर को हनुमान जन्मोत्सव और नरक चतुर्दशी मनाई जाएगी। विद्वानों का कहना है कि काशी के सभी पंचांगों के मुताबिक पूरे देश में 31 अक्तूबर को ही दीपावली मनाई जाएगी। 
काशी के विद्वान जहां 31 अक्तूबर को दीपावली मनाने की बात कह रहे हैं, वहीं इंदौर के संस्कृत महाविद्यालयों के विद्वानों का मत इससे अलग है। विद्वानों की बैठक में 31 अक्तूबर के बजाय 1 नवंबर को दीपावली मनाने का फैसला हुआ है। मध्य प्रदेश ज्योतिष और विद्वत परिषद ने विद्वानों की बैठक बुलाई। बैठक में विद्वानों ने कहा कि जब दो दिन त्योहार की स्थिति बनती है तो दूसरा दिन ग्रहण करने की बात धर्म शास्त्रों में कही गई है। अमावस्या पितरों की तिथि है। पितरों के पूजन के बाद शाम में लक्ष्मी पूजन किया जाए, लेकिन लक्ष्मी पूजन के बाद पितरों का पूजन शास्त्रों के अनुसार नहीं है। 
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मध्य प्रदेश वैदिक और विद्वत परिषद के वैदिक आचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक का कहना है कि इस साल 31 अक्तूबर और एक नवंबर दोनों ही दिन अमावस्या तिथि प्रदोष काल में है।
साभार अमर उजाला

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