श्मशानघाट के अभाव में खेत में हुआ अंतिम संस्कार

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 पंचायत के मतवारी गांव में तिरपाल तानकर दी अंतिम विदाई, सरपंच पति बोले “निजी भूमि पर बनाएंगे श्मशान
दीपक परमार जिला ब्यूरो शिवपुरी 
लालपुर
करेरा (शिवपुरी)।
करेरा जनपद की ग्राम पंचायत लालपुर के अंतर्गत आने वाले ग्राम मतवारी में गुरुवार को एक भावुक और चिंताजनक दृश्य सामने आया, जब गांव में श्मशानघाट न होने के कारण ग्रामीणों ने एक मृतक का अंतिम संस्कार खेत में तिरपाल लगाकर किया। बरसात के मौसम में ग्रामीणों की यह मजबूरी प्रशासनिक लापरवाही की सजीव तस्वीर बन गई।
गांव में आज तक कोई श्मशानघाट निर्मित नहीं हुआ है। इस कारण हर बार किसी की मृत्यु होने पर ग्रामीणों को खुले खेतों या किसी के निजी जमीन पर अंतिम संस्कार करना पड़ता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ — ग्रामीणों ने बारिश में भीगते हुए तिरपाल डालकर चिता सजाई और विधिवत संस्कार किया।
बरसात में तिरपाल के नीचे अंतिम विदाई
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि वर्षों से श्मशानघाट की मांग की जा रही है, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। जब भी कोई मृत्यु होती है, ग्रामीण अपने स्तर पर ही व्यवस्था करते हैं।
गांव की महिला सरपंच उर्मिला/उदल सिंह कुशवाह, सचिव हनुमंत सिंह परिहार और सहायता सचिव नरेंद्र सिंह कुशवाह के बावजूद अब तक पंचायत ने श्मशान भूमि चिन्हित नहीं की है
 सरपंच पति बोले “शासकीय जमीन नहीं, निजी भूमि देंगे

इस घटना पर जब संवाददाता ने सरपंच पति उदल सिंह कुशवाह से फोन पर बात की, तो उन्होंने बताया कि “मतवारी गांव में शासकीय भूमि उपलब्ध नहीं है, इसी कारण श्मशानघाट नहीं बन पाया। लेकिन हम स्वयं अपनी निजी भूमि देने को तैयार हैं ताकि गांव में सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार की व्यवस्था हो सके।”
उन्होंने यह भी कहा कि “जल्द ही सांसद निधि की राशि प्राप्त होने की उम्मीद है। राशि मिलते ही निजी भूमि पर श्मशानघाट निर्माण शुरू कराया जाएगा।”
हालांकि, ग्रामीणों के बीच यह चर्चा का विषय है कि क्या निजी भूमि पर बने श्मशानघाट को बाद में स्थायी रूप से सरकारी अभिलेखों में दर्ज किया जा सकेगा या नहीं।
ग्रामीणों की पीड़ा — “प्रशासन से केवल आश्वासन
गांव के नागरिक रामसेवक कुशवाह, भूरा आदिवासी, मक्खन रजक उदयराज पाल महेन्द्र पाल ,लल्ला पाल रामसेवक कुशवाह ,होतम पाल राममनोहर गुप्ता आदि ने बताया कि पंचायत में हर बार वादा किया जाता है, लेकिन जमीन चिन्हांकन या प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ाया गया।
ग्रामीणों ने कहा कि “सरकार गांव-गांव में विकास योजनाओं की बात करती है, लेकिन जब किसी मृत व्यक्ति को सम्मानजनक विदाई देने की जगह ही न हो, तो यह बड़ी विडंबना है।
मतवारी गांव की आबादी बढ़ रही है, लेकिन अब तक श्मशानघाट जैसी बुनियादी सुविधा नहीं मिलना गंभीर विषय है। कई ग्रामीणों ने बताया कि बरसात में खेतों में कीचड़, मच्छर और दुर्गंध के बीच अंतिम संस्कार करना बहुत कठिन होता है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि तहसील प्रशासन को तुरंत इस दिशा में हस्तक्षेप कर राजस्व भूमि की खोज और सीमांकन कर श्मशानघाट के लिए प्रस्ताव स्वीकृत कराना चाहते 
 ग्रामीणों की मांगस्थायी श्मशानघाट हो, निजी नहीं
गांव के युवाओं और महिलाओं ने सामूहिक रूप से कहा कि श्मशानघाट का निर्माण सरकारी भूमि पर होना चाहिए ताकि यह सार्वजनिक संपत्ति के रूप में संरक्षित रहे।
उन्होंने कहा कि “सरपंच पति का निजी भूमि देने का प्रस्ताव सराहनीय है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान तभी होगा जब यह पंचायत के रिकॉर्ड में दर्ज होकर स्थायी संपत्ति बने।

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