राम कथा में कर्म की महत्ता पर हुआ गूढ़ विवेचन बताया गया कि कर्म प्रधान है

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महू,भट्ठे सरकार बालाजी मंदिर परिसर में चल रही श्रीराम कथा के छठे दिवस पर मुख्य जजमान चतुर्भुज प्रजापति विधि विधान से  पूजा अर्चना की गई उसके पश्चात संगीतमय संध्या में युवाचार्य श्री अभिषेक कृष्ण जी महाराज ने श्रद्धालु भक्तों को कर्म की गूढ़ता का भावपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने राजा दशरथ और श्रवण कुमार की कथा का उदाहरण देते हुए बताया कि “कर्म प्रधान है — जो भी कर्म हम करते हैं, वह लौटकर हमारे पास अवश्य आता है।”
उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीराम को वनवास मिला, तब राजा दशरथ को अपने पूर्वजन्म के पाप का स्मरण हुआ, जब उन्होंने अज्ञानवश श्रवण कुमार को तीर मार दिया था। श्रवण के अंधे माता-पिता को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने पुत्र शोक में प्राण त्याग दिए। उसी पाप का फल दशरथ को राम-वियोग के रूप में भोगना पड़ा। युवाचार्य जी ने भावपूर्ण शैली में कहा, “जैसे हजारों गायों के बीच बछड़ा अपनी मां को ढूंढ लेता है, वैसे ही कर्म भी अपने कर्ता को खोज ही लेता है।”
इस अवसर पर राम के वनगमन एवं केवट चरित्र का भक्तिपूर्ण वर्णन किया गया, जिसे सुनकर उपस्थित जनसमूह भावविभोर हो उठा। कथा पंडाल श्रद्धा और भक्ति से सराबोर रहा तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन कथा श्रवण के लिए उपस्थित रहे।
कथा के उपरांत रात्रि में संगीतमय सुंदरकांड का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने श्रद्धा भाव से भाग लिया और ‘जय श्रीराम’ के जयघोष से वातावरण गूंज उठा।
भक्तगणों की अपार उपस्थिति ने यह प्रमाणित किया कि रामकथा न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि जीवन मूल्य और आत्मचिंतन का दर्पण भी है।

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