Category : Dharm

सहजयोग हर्ष व विषाद से मुक्त चिर आनंद की अवस्था है

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आतम अनुभव जब भयो तव नहीं हर्ष विषाद, चित्रदीप सम है रहे, तजिकर वादविवाद ॥ हमारी भारतीय संस्कृति आत्मोन्नति की बात करती है। अध्यात्म इस भूमि के कण-कण में बसा है। हमारे भारत देश में जितने भी संत हुए, ऋष...

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स्वयं का परिष्कार ही सहजयोग ध्यान है

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तपस्या भी मानसिक, वाचिक और कर्म आधारित है। मन को सभी इंद्रियों व उनके सुख में जाने से रोकना मानसिक तप है। व्यर्थ नहीं बोलना और मौन रखना वाचिक तप है। किसी इच्छापूर्ति या पाने की आकांक्षा हेतु व्रत रखना...

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